अश्रुनन कृत्वा अहम् सा सह गतः ; सा बाह्यावरणनिष्कास्य केचन मोदफलम् मह्यं अददत् , अहम् सानंदेन भक्षितं, जलाभावे एतत् अति श्लाघ्यमासीत् , अहम् अचिन्तयम यत् केन सा ज्ञाता यत् नगरजलम् अलम् मह्यं, सा भगिनी-समम् कार्य कृता, तत्पश्चात् अहम् कथितं, "अधुना अहम् गच्छामि" सहर्षं गरिआहाड़वहि: आगत्य कथिता "बाई, पुनः आगच्छतु"
इदं 'पुनः' कदा भविष्यति अहम् न जानामि; परन्तु अहम् तस्याः प्रेमसिञ्चितं अद्य च.
* बिना कुछ सुनले हम उनका साथ चल गइनी. ऊ हमरा के दू चार गो छील छील के प्यार से लीची देली जे हम गुबुर गुबुर खात गइनी. खूब नीमन लागल; पियासो चल गइल. बाकिर आज तक हमरा ई पता ना चलल, उनका ई कैसे पता चलल कि हम शहर के कल के पानी ना पीहीं ?
का ओह बहिन के भीतरी प्रेम रहे.
ई सब हमार सहपाठी लोग ना समझ सकलन .
बाद में, बहुत बाद में हमरा पता लागल कि ढेर बात आदमी बिना कहले उहले समझ जाला, जब कवनो बात मन से कइल जाय *